कहते हैं कि जंगल बादलों को आकर्षित करते हैं। इन्हीं जंगलों में रहते हैं तरह तरह के वन्य जीव और सुंदर सुंदर पेड़ पौधे। ये जितनी तरह के होते हैं उनकी इस वैरायटी को जैव विविधता कह सकते है। साल 1980 में biological diversity से biodiversity बना ये शब्द समेटता है, जंगल सहित जंगल में रहने वाले सभी छोटे से छोटे और बड़े जीवों को और साथ ही उनके रहने, खाने-पीने, शिकार करने के तरीकों एवं उनकी विशेषताओं को। अगर आपको ये परिभाषा समझ न आई हो तो स्क्रीन पर आया ये चित्र ही देख लीजिए, सब समझ जाएंगे। जिस शब्द की परिभाषा हम आपको समझाने में लगें हैं उसी का दिन है। यानि जैव विविधता दिवस जो हर साल की 22 मई को मनाया जाता है ताकि दुनिया भर की जैव विविधता को संरक्षित किया जा सके। खैर दुनिया की तरफ नहीं अपनी तरफ रुख करते हैं।
यानि हमर छत्तीसगढ़ के डहर। लगभग 44 प्रतिशत ले जादा जंगल ले हरियर हमर छत्तीसगढ़ म दस तरह के वन पाए जाथे। जेन ल दो ग्रुप होटल वाले वन अउ सुखा वाले वन म बाटे गे हे। अकेले छत्तीसगढ़ एम 2000 ले भी अधिक जीव जंतु के वास्तुशिल्प पाया जाथे। एकरे सेती इहा के संस्कृति में हर तरह से प्रकृति मिले हे। आंकड़ों में बात करें तो ISFR 2023 का कहना है कि छत्तीसगढ़ का कुल क्षेत्रफल 135191 वर्गवर्ग में 59816 वर्गवर्ग वन क्षेत्र है। लगभग आधे राज्य में वन क्षेत्र से अलग होने के कारण यहां की जैव विविधता ही दिखती है। इसके कारण से देश का तीसरा भाग और 56वें टाइगर रिजर्व शामिल हैं जिनमें 4 टाइगर रिजर्व, 3 नेशनल पार्क, 11 वन्यजीव अभयारण्य और पक्षी, हाथी, भालू संरक्षित क्षेत्र मौजूद हैं। यहां के सरगुजा के गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क में यह उल्लेख मिलता है कि प्राचीन काल में यहां कोई समुद्र और समुद्री जैव विविधता नहीं थी। वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया म्यूजियम में एक साल पहले की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजापुर के गंगालूर के जंगलों में दुर्लभ चॉकलेट की मूर्तियां पाई जाती हैं, जिसे जीता हुआ माना जाता है क्योंकि पामेड़ और इंद्रावती कॉम्प्लेक्स अभ्यारण्य के क्षेत्र में ये दुर्लभ औषधियां प्रागैतिहासिक से लेकर दुर्लभ काल के पाई गई हैं। डेयरडेविल में कभी भगवान राम ने लीला की थी और सभी मित्रवत एविएशन मित्र को भी आशीर्वाद दिया था।
छत्तीसगढ़ के भूभाग में पहाड़, पठार और मैदान बहुत अहम भूमिका निभाते हैं – ये इसके भूभाग का करीब एक-तिहाई हिस्सा हैं। यही जंगल महानदी, नामकरण और इंद्रावती जैसी बड़ी नदियों को जन्म देते हैं और साथ ही कई अनोखे पेड़-पौधों और चट्टानों का घर भी हैं। छत्तीसगढ़ के अचनाकमार, उदंती-सीतानदी, कोंडागांव, और गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व जैसे झीलों में तस्वीरें सिर्फ देखने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए हैं। बाघ की एक झलक, हाथों की पदचाप, उड़न गिलहरी की चिड़िया, और चीतल की फुर्तीली दौड़ – ये सभी मिलकर एक अनोखे रोमांच हैं, जो कहीं और नहीं मिलेगा। यहां का आकाश तरह-तरह के पक्षियों के रंग से भरा होता है – ब्लू बर्ड वाला हॉर्नबिल, लाल आंख वाला तीतर, और दूर-दूर से आने वाले प्रवासी पक्षी और कांगर घाटी में ही मिलते हैं वलिया मैना की मंत्र ध्वनिमुग्ध कर देते हैं।
छत्तीसगढ़ के जंगल में सिर्फ जंगल का घर नहीं हैं, ये आदिवासी संस्कृति की आत्मा भी है। उनके नृत्य, उत्सव और पूजा-पद्धति प्रकृति से गहराई तक जुड़े हुए हैं। यहां जंगल को देवी-देवताओं की तरह-तरह से पूजा जाता है। मगर अब राज्य में विकास के नाम पर आंध्रा को काटे जाने के कारण यहां की जैव विविधता खतरे में है, कृषि के लिए अधिकाधिक उपयोग ने वृक्षावरण तो स्केल है मगर वनवाराण में कमी ला दी है। ऐसा ही कुछ Isfr की ताज़ा रिपोर्ट में है। अब देखिए कि जैव विविधता को क्या हम विकास के नाम पर धीरे-धीरे खत्म करते हैं या पलायन के नाम पर केवल एक दिन मनाएंगे और ही करेंगे।
